आन-मान- शान पर मर मिटने वाले राजपूत

दुनिया में ऐसा और कोई समाज नहीं है, जिसमें एक से अधिक भगवान पैदा हुये हों, मगर राजपूत समाज में श्री राम, श्री कृष्ण गौतम बुद्ध और महावीर स्वामी सहित जैन समाज के सभी 24 भगवान (तीर्थंकर) पैदा हुये, जो सारी दुनिया को सत्य अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह आदि को उपदेश दिया। भटकी हुई मानवता को असंतो मा सद् गमय,  तमसो मा ज्योतिर्गमय का उपदेश दिया। भारत के अतिरिक्त- श्रीलंका, कम्पूचिया, वियतनाम, चीन और जापान आदि देशों में बौद्ध धर्म के करोड़ों श्रद्धालु हैं, जो भारत को ""देव भूमि'' के रूप में मानते हैं। यह राजपूतों के साथ-साथ भारत के लिये गर्व की बात है।
सुप्रसिद्ध इतिहासकर कर्नल टाड ने भी ठीक ही लिया है- ""दुनिया में ऐसी कोई और जाति नहीं, जो सदियों तक बर्बरता के आघातों को सहती, मुँह के बल गिर पड़ती। फिर उठ खड़ी होने का साहस रखती है तथा संकट और संघर्ष के घोर अंधकार में अपनी सभ्यता और संस्कृति को अक्षुण्ण बनाये रखती।''
ईसा से लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व ऋग्वैदिक काल भारत (आर्यावर्त) में वर्ण व्यवस्था प्रचलित थी। चार वर्ण थे। ऐसा माना जाता था कि ब्राहाा के मुख से ब्राहमणों, भुजाओं से क्षत्रिय, पेट वैश्य और पैर से शूदों को जन्म हुआ। ऋग्वेद के श्लोकों से यह भी ज्ञात होता है कि एक परिवार में कई जातियों के लोग रहते थे। ब्रााहमणों और क्षत्रियों के लिये शिक्षा  की व्यवस्था थी, अन्य के लिये नहीं। यूरोप के दार्शनिक अफलातून (प्लेटो) ने अपने आदर्श राज्य और सम्पूर्ण दर्शन का आधार उसने भारतीय वर्ण व्यवस्था के आधार पर तैयार किया था।  उसने जातियों को विवेक, साहस और श्रम के रूप में तीन जाति में विभक्त किया था।
प्राचीन भारत में राजपूत शासक, सैनिक, प्रांतपाल और जमींदार हुआ करते थे। उनकी स्थिति यूरोप के सामंतों और जापान के सामुरायियों जैसी थी। राजपूत राजा इस धरती पर ईश्वर का प्रतिनिधि तथा विष्णु का अवतार माना जाता था। राजा सर्वोच्च न्यायाधीश, सर्वोच्च प्रशासक और सर्वोच्च न्यायाधीश होता था। उसकी इच्छा ही कानून थी।
""राजपूत'' शब्द संस्कृत के राजपुत्र शब्द का हिन्दी रूपांतरण है, जिसका अर्थ होता है-राजा का पुत्र। प्राचीन भारत में मनु नामक सूर्यवंशी राजा हुये। राम ने उन्हीं के वंश में राजा रघु अज, रघु, दिलीप और दशरथ के बाद जन्म लिया। इसी तरह पाण्डव और कौरव भी चंद्रवंशी क्षत्रिय शासक थे।
ईसा पूर्व छठी श्ताब्दी आते-आते भारत में हिन्दू धर्म में जाति-पाँति, छुआछूत तथा ऊँच-नीच की भावना की बुराइयाँ आ गयीं, जिसके कारण गौतम बुद्ध और महावीर स्वामी ने हिन्दू धर्म के खिलाफ बगावत कर दी और जिसके फलस्वरूप बौद्ध धर्म व जैन धर्म नामक दो नये धर्मों का अभ्युदय हुआ। जिन्होंने  सामाजिक समानता और बंधुत्व का प्रचार-प्रसार किया और कहा कि सभी मनुष्य समान है। कोई ऊँच-नीच नहीं है। वर्ण व्यवस्था आडम्बर है।
भारत की इस भूमि और संस्कृति पर बार-बार आक्रमण हुये और आतंकवाद के रूप में आज भी हमले हो रहे हैं। शक, हूण, कुषाण आदि जातियों के विदेश आक्रमणकारी भारत आये और भारतीय राजपूतों की आपसी फूट का लाभ उठाकर भारत भूमि पर कब्जा किया और यहाँ की उन्नत सभ्यता-संस्कृति और जलवायु से प्रभावित होकर यहीं बस गये और अपने-आप को राजपूत  (क्षत्रिय) घोषित कर दिया। इन सभी को राजपूतों ने भारत भूमि पर 5 हजार वर्ष ( लगभग एक हजार ई.तक) तक बिना किसी विशेष संघर्ष के शासन किया
विश्वविजयी सिकंदर भी प्रथम दौर के युद्ध में भारतीय राजपूत शासक पोरस से हार गया मगर दूसरे दौर में युद्ध के नियमों का उल्लघंन करने छल-छद्म में से युद्ध जीत गया। इसी प्रकार, यूनानी आक्रमणकारी सिल्युकस भी भारत के ख्यातनाम राजपूत सम्राट चन्द्रगुप्त से युद्ध हार गया गया और अतंत वह अपनी पुत्री का विवाह चन्द्रगुप्त मोर्य से करके वापस यूनान चला गया। वह भारतीय सभ्यता और संस्कृति से बहुत प्रभावित हुआ। उसने अपनी आत्मकथा में भारत और उसकी समृद्ध संस्कृति की भूरि-भूरि प्रशंसा की । मध्ययुग में मुगलों ने राजपूतों में व्याप्त आपसी फूट,  ईष्र्यों-द्वेष तथा तुच्छ महत्वकांक्षा का लाभ उठाकर भारतीय सभ्यता संस्कृति और धर्म के साथ बार-बार अत्याचार किया।
राजपूतों और मुगलों में लगभग 100 वर्ष तक युद्ध चला, अतंत मुगलों ने कूटनीति के बल पर राजपूतों को वश  में करके भारतीय संस्कृति के हिन्दूओं को मार-मार कर मुसलमान बनाया गया। भारत के सभी मुसलमान मूलत: हिन्दू ही हैं।  मुगलों का आंतक सारे देश पर इस कदर छाया कि भारत में पर्दा प्रथा, सती, और बाल विवाह जैसी गलत परम्पराओं का जन्म हुआ। हिन्दू अपनी बहन-बेटियों की इज्जत बचाने के लिये बाल विवाह करने के लिये मजबूत हुये। मुगलों के आक्रमण से क्षत्राणियों अपने पति की मृत्यु के उपरांत स्वेच्छा से स्वंय को अग्नि को समर्पित कर सती  हो जाया करती थी। कभी-कभी ऐसे आयोजन सामूहिक रूप से हुआ करते थे, जिसे ""जौहर'' कहा गया।
मुगलों के शासन के सूर्यास्त के बाद अंग्रेजों को शासन आया। अंग्रजों ने भारतीय सभ्यता और अर्थव्यवस्था को नेस्तानाबूत किया। धार्मिक उन्माद के तहत धर्म परिवर्तन को बढ़ावा दिया गया। देश का आर्थिक शोषण तीव्र गति से किया गया। उनके राजपूत राजाओं ने धीरे-धीरे अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार कर ली। अंग्रेजों का शिकंजा ज्यों-ज्यों कसता गया, त्यों-त्यों उसके विरूद्ध प्रतिक्रिया भी हुई। राष्ट्रवादियों द्वारा देश में राष्ट्रीय आंदोलन चलाया गया। देश 15 अगस्त, 1947 को आजाद हुआ और देश में विधि का शासन, विधि की समानता, स्वतंत्र न्यायालय और लोकतंत्र अभ्युदय हुआ।
आधुनिक युग में राजपूतों की स्थिति बहुत दयनीय हो गयी है। दरअसल, राजपूतों का इतिहास स्वतंत्रता के लिये संघर्ष का इतिहास रहा है।