चेतना की शक्ति


जब हम अपने को उस असीम ऊर्जावान परमात्मा से जोड़ते हैं तब हमें अपने अंदर छिपी अनंत ऊर्जा का आभास होता है। यदि हम अपनी चेतना और ऊर्जा को मानव कल्याण के लिए रचनात्मक कार्यो में लगाएं तो हमारा मूल्यांकन देवत्व की श्रेणी में होगा। हमारे ऋषियों ने हमें अपनी आत्मचेतना को पहचानने के तमाम उपाय बताए हैं। यदि हम अपने को परमात्मा का अंश मानकर लोक व्यवहार में सदाचार का पालन करें तो हम उन अनर्थो से बचेंगे जो हमसे अनजाने होते हैं। हमारा शरीर परमात्मा का मंदिर है, यदि हमसे कोई गलत काम होता है तो हममें विराजमान परमात्मा प्रभावित होगा। हमारी चेतना हमें सचेष्ट करती रहती है कि हम अपने आचरण में मलिनता न आने दें, किंतु स्वार्थवश हम उस संकेत को नजरअंदाज करते रहते हैं। यह हमारा दोष है, जिसकी कीमत हमें अपने जीवन में चुकानी पड़ती है। मनुष्य हित-अनहित भलीभांति जानता है, किंतु स्वार्थवश वह गलत रास्ते पर जाता है। मानव शरीर में चेतना के रूप में विद्यमान दूसरा तत्व है आत्मा जो परमात्मा का अंश है। यही दोनों शरीर व आत्मा मिलकर मानव का अस्तित्व कायम रखते हैं। हमें शरीर को स्वस्थ रखना है, उत्तम खानपान और संयमित दिनचर्या से एवं आत्मा को निर्मल रखना है उत्कृष्ट विचारों से। यह स्वस्थ हैं तो हमारे जीवन में आने वाली परिस्थितियां हमें विचलित नहीं कर सकतीं और हम अपने जीवन को सार्थक बनाने में सफल होंगे। हमारा हित इसी में है कि हम अपने को कमजोर न समझें, क्योंकि प्रभु हमारे साथ हैं। मनुष्य शरीर से तो रोगी और कमजोर हो सकता है, किंतु आत्मा से बलवान रहता है। अत: हमें आत्मा की शक्ति को जानना होगा। चेतना में असीम शक्ति है, समस्त भौतिक विकास एवं हमारा गौरवशाली अतीत परिष्कृत चेतना का ही परिणाम है। हमारा आध्यात्मिक चिंतन जितना प्रखर होगा उतना ही हम चेतना को पहचानेंगे और आचरण में उत्कृष्टता अपनाएंगे। हमारा अस्तित्व चेतना की नींव पर खड़ा है। शरीर से हम जो काम लेते हैं उसके पीछे हमारी चेतना का ही हाथ है। पंचतत्वों से निर्मित हमारा यह शरीर चेतना से ही स्पंदित होता है।

जहां मिट्टी से ठीक होता है गठिया रोग!
बुंदेलखण्ड की धरती पर कई देवी-देवताओं के स्थान हैं और उनसे जुड़ी लोगों की आस्थाएं भी अलग-अलग हैं। इन्हीं में से एक है हमीरपुर जनपद के झलोखर गांव में भुवनेश्वरी देवी का अनूठा स्थान जहां न मंदिर है और न कोई मूर्ति। नीम के पेड़ के नीचे एक भारी-भरकम टीले पर विराजमान इस देवी स्थान के बारे में लोगों का मानना है कि यहां की मिट्टी लगाने मात्र से गठिया रोग ठीक हो जाता है।
वैसे तो बुंदेलखण्ड की सूखी की धरती पर लोकी दाई, हरसोखरी दाई, चिथरी दाई, कथरी दाई, भुइयांरानी, काली दाई, पचनेरे बाबा, बरियार चौरा, कंडहा बाबा, मदना बाबा जैसे सैकड़ों देवी-देवताओं के देवस्थान हैं जिनसे ग्रामीणों की ही नहीं, शहरी लोगों की भी आस्था जुड़ी है।
कई ऐसे देवस्थान हैं जिनके बारे में लोगों का मानना है कि यहां आने से विभिन्न गम्भीर बीमारियां ठीक होती हैं। झलोखर गांव के भुवनेश्वरी देवी के टीले पर चढ़ौना के रूप में कोई प्रसाद नहीं चढ़ाया जाता, लेकिन यहां रविवार को भक्तों की भीड़ जमा होती है। ज्यादातर भक्त गठिया रोग से पीडि़त होते हैं। 
लोगों का मानना है कि एक नीम के पुराने पेड़ के नीचे विराजमान भुवनेश्वरी देवी स्थान के टीले की मिट्टी लगाने मात्र से गठिया बीमारी जड़ से दूर हो जाती है। देवी का पुजारी मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार बिरादरी से ही नियुक्त करने की परम्परा है। 
पुजारी कालीदीन प्रजापति ने बताया कि गठिया से पीडि़त दूर-दूर के लोग यहां रविवार को आते हैं। इसी गांव के निर्भयदास प्रजापति ने बताया, वर्षो पहले गांव के प्रेमदास प्रजापति को देवी मां ने स्वप्न में कहा था कि उनका स्थान मिट्टी का ही यानी कच्चा रहेगा, ताकि गठिया रोग से पीडि़त लोग अपने बदन में इसे लगा कर चंगा हो सकें।
सन् 1875 के गजेटियर में कर्नल टाड ने लिखा है,इस देवी स्थान के पास के तालाब की मिट्टी में गंधक और पारा मौजूद है जो गठिया रोग को ठीक करने में सहायक होता है।  बुंदेलखंडवासी पंडित कमल तिवारी जो कि अब इंदौर में निवास करते हैं ने बताया कि यहां लगातार पांच रविवार तक आकर टीले की मिट्टी लगाने से गठिया बीमारी जड़ से खत्म हो जाती है।

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