जीवात्मा का सच्चा संबंध प्रभु से होना चाहिए - पं. सुमित आचार्य
इंदौर, विश्वगुरु। 
आपके हृदय में भगवान का वास है तो श्रीहरि पाप, पाखंड, रजोगुण, तमोगुण से हमेशा दूर रखते हैं। भगवान का उन्हीं लोगों के हृदय में वास होता है, जो सत्कर्म करते हैं। अनैतिक कमाई का लाभ तो कोई भी उठा सकता है। परन्तु तुम्हारे अनैतिक कर्मों को तुम्हें ही भोगना होगा। इसलिए कर्म करनें में सावधानी बरतें। तेजाजीनगर स्थित जोशी कॉलोनी में श्रीमद्भागवत कथा में तीसरे दिन व्यास पीठ से कथा सुनाते हुए महाराज सुमित जी आचार्य ने यह बात कही।
कथा में तीसरे दिन उन्होंने शिव विवाह, ध्रुव चरित्र, बामन अवतार आदि की कथा का संगीतमय वर्ण किया। बताया कि किस तरह कश्यप ऋषि व अदिति के पुत्र के रूप में जन्म लेकर किस तरह श्रीनारायण ने राजा बलि से भिक्षा में तीन पग जमीन मांगी। और ढाई पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया। शिव व सती प्रसंग की व्याख्या करते हुए बताया कि किस तरह शिव (पति की) आलोचना सुनने पर सती माता ने अपना शरीर यज्ञ कुण्ड में भस्म कर दिया। 
जब शिवजी ने सती की देह को लेकर भ्रमण किया तो नारायण के चक्र से सती माता के शरीर 51 स्थानों पर गिरा, जहां शक्ति पीठों की उत्पति हुई। जीवात्म का सच्चा सम्बंध सगे सम्बंधियों से नहीं बल्कि प्रभु से होना चाहिए। वह जीवन निरर्थक है जो मनुष्य जन्म में भी प्रभु की भक्ति न करे। शिव विश्वास और माता पार्वती श्रद्धा हैं। अंत में आरती कर सभी भक्तों को  प्रसाद वितरण किया गया। कल नन्दोत्सव होगा।

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