महाराणा प्रताप जी की जयंती साल में दो बार क्यों मनाई जाती है?
इंदौर। महाराणा प्रताप, मेवाड़ के सिसोदिया राजपूत राजवंश के एक शूरवीर राजा थे।
 वीर महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया के नायक जिनकी वीरता, त्याग और बलिदान की गाथाएं आज भी देश भर में गूंजती हैं। महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को एक राजपूत शाही परिवार में हुआ था। पिता उदय सिंह मेवाड़ा वंश के शासक थे। महाराणा प्रताप उनके सबसे बड़े पुत्र थे। महाराणा प्रताप के तीन छोटे भाई और दो सौतेली बहनें थीं। बहादुर महाराणा प्रताप ने मुगल आक्रमणों के खिलाफ अनगिनत लड़ाईयां लड़ी थीं। उसने युद्ध के दौरान अकबर को तीन बार (1577, 1578 और 1579) हराया था।
कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने जंगल में घास की रोटी खाई और जमीन पर सोकर रात बिताई, लेकिन अकबर के आगे उन्होंने कभी हार नहीं मानी। यह भी कहा जाता है कि महाराणा प्रताप अपनी तलवार के एक ही वार से घोड़ों सहित शत्रुओं के दो टुकड़े कर देते थे।

साल में 2 बार मनाई जाती है महाराणा प्रताप की जयंती
गौरतलब है कि भारत के गौरव और वीरों के नायक महाराणा प्रताप की जयंती वर्ष में दो बार मनाई जाती है। 9 मई 2023 को उनकी 486वीं जयंती मनाई जाएगी। इस मौके पर हम आपको उनके जीवन से जुड़े प्रेरक और रोचक पहलुओं से रूबरू कराएंगे। आपको बता दें कि महाराणा प्रताप की दो जयंती कुछ विशेष कारणों से मनाई जाती है। इसमें एक तिथि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 9 मई, 1540 है, जबकि कई लोग उनका जन्मदिन हिंदू पंचांग के अनुसार जेठ मास की तृतीय को गुरु पुष्य नक्षत्र में मनाते हैं।
सिसोदिया वंश के योद्धा महाराणा प्रताप सिंह एक महान व्यक्तित्व के धनी थे, उनका कद 7 फीट 5 इंच था, जो अकबर के कद से काफी अधिक था। उनके मजबूत शरीर का वजन 110 किलो था। युद्ध के मैदान में 104 किलो की दो तलवारें अपने पास रखते थे, ताकि जब उनका सामना किसी निहत्थे दुश्मन से हो, तो वह उन्हें तलवार दे सकें। क्योंकि महाराणा प्रताप निहत्थों पर वार नहीं करते थे। उनके भाले का वजन 80 किलो और कवच का वजन 72 किलो था। महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक बहुत शक्तिशाली था। आपको बता दें कि महाराणा प्रताप के पास भी एक हाथी था। उसका नाम रामप्रसाद था, वह बड़ा बलवान भी था।
 
'बैटल ऑफ दिवेर' और 'थर्मोपल्ली ऑफ मेवाड़ा'
यह वीर महाराणा प्रताप की वीरता का ही परिणाम था कि विशाल सेना होने के बावजूद अकबर उन्हें कभी गिरफ्तार नहीं कर सका। वह मेवाड़ पर भी पूर्ण अधिकार प्राप्त करने में असमर्थ था। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 1576 में हुए हल्दीघाटी युद्ध के बाद मुगलों ने कुम्भलगढ़, गोगुन्दा, उदयपुर और आसपास के इलाकों पर कब्जा कर लिया, लेकिन अकबर और उसकी सेना महाराणा प्रताप का बाल भी बांका नहीं कर पाई। अकबर ने हार नहीं मानी। उन्होंने 1577 से 1582 के बीच हजारों सैनिक भेजे, लेकिन महाराणा प्रताप ने हर बार उसके छक्के छुड़ा दिए। अंग्रेज इतिहासकार के अनुसार हल्दीघाटी के युद्ध को "थर्मोपल्ली ऑफ मेवाड़ा" के सम्मान से सम्मानित किया गया था जबकि दिवेर युद्ध में महाराणा प्रताप को बैटल ऑफ दिवेर से नवाजा गया था, जिसमें भी महाराणा प्रताप ने अकबर को बुरी तरह हराया था।

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