चेन्नई स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ मैथमैटिकल साइंसेज (IMSC) की प्रोफेसर सीताभरा सिन्हा ने कहा, "इलाज करने वाले मरीजों की संख्या तेजी से घट रही है और मौजूदा अभ्यास को देखते हुए, हम निश्चित रूप से भविष्य में एक नई लहर के बारे में नहीं कह सकते हैं।" उल्लेखनीय है कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर के ताजा मॉडल अध्ययन में कहा गया था कि संभव है कि कोविड-19 महामारी की चौथी लहर 22 जून से शुरू होकर अगस्त के मध्य तक रह सकती है। आईआईटी कानपुर के शोधकर्ता एस प्रसाद राजेश भाई, शुभ्रा शंकर धर और शलभ के अध्ययन ने रेखांकित किया है कि यह संभव है कि वायरस के नए रूप का व्यापक प्रभाव पड़ेगा।
महामारी फैलने के बाद से भारत में कोविड-19 के मामलों की निगरानी कर रहे गौतम मेनन ने कहा, ''समय ही संदिग्ध है।'' मेनन, अशोक विश्वविद्यालय, हरियाणा में भौतिकी और जीव विज्ञान विभाग के प्रोफेसर ने 'पीटीआई-भाषा' से कहा, "मुझे ऐसे किसी पूर्वानुमान पर भरोसा नहीं है, खासकर जब तारीख और समय दिया गया हो।" उन्होंने कहा, "हम भविष्य के बारे में कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकते, क्योंकि एक संभावित आगामी रीडिज़ाइन अज्ञात है। हालांकि, हम सतर्क रह सकते हैं और तेजी से डेटा एकत्र कर सकते हैं ताकि प्रभावी और त्वरित कार्रवाई की जा सके।"
स्वास्थ्य विशेषज्ञ भ्रामर मुखर्जी ने भी सहमति जताते हुए कहा कि आईआईटी कानपुर द्वारा किया गया पूर्वानुमान डेटा ज्योतिष है न कि आंकड़े। अमेरिका में मिशिगन विश्वविद्यालय में वैश्विक स्वास्थ्य के प्रोफेसर मुखर्जी ने पीटीआई-भाषा से कहा, "मुझे पूर्वानुमान पर विश्वास नहीं है। मेरे अनुभव के अनुसार पूर्वानुमान मॉडल अल्पावधि यानी अगले दो से चार सप्ताह के पूर्वानुमान के लिए अच्छा है। यह लंबे समय में विश्वसनीय नहीं है। क्या किसी ने दीवाली के समय ओमाइक्रोन की भविष्यवाणी की होगी? हमें अतीत पर आधारित ज्ञान के प्रति कुछ विनम्रता रखनी चाहिए।"
वाशिंगटन और नई दिल्ली में सेंटर फॉर डीसी के डायनेमिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी के महामारी विज्ञानी और निदेशक रामनन लक्ष्मीनारायण का विचार है कि नई छोटी लहरें हो सकती हैं लेकिन आईआईटी कानपुर का पूर्वानुमान स्पष्ट नहीं है। वहीं, अध्ययन का बचाव करते हुए इसके लेखक राजेशभाई, शंकर धर और शलभ ने एक संयुक्त ई-मेल में पीटीआई-भाषा को बताया कि पेपर में की गई वैज्ञानिक गणना सांख्यिकीय मॉडल और वैज्ञानिक मान्यताओं पर आधारित है। अकादमिक और अनुसंधान में ऐसे मॉडलों और धारणाओं का उपयोग आम है।
वाशिंगटन और नई दिल्ली में सेंटर फॉर डीसी के डायनेमिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी के महामारी विज्ञानी और निदेशक रामनन लक्ष्मीनारायण का विचार है कि नई छोटी लहरें हो सकती हैं लेकिन आईआईटी कानपुर का पूर्वानुमान स्पष्ट नहीं है। वहीं, अध्ययन का बचाव करते हुए इसके लेखक राजेशभाई, शंकर धर और शलभ ने एक संयुक्त ई-मेल में पीटीआई-भाषा को बताया कि पेपर में की गई वैज्ञानिक गणना सांख्यिकीय मॉडल और वैज्ञानिक मान्यताओं पर आधारित है। अकादमिक और अनुसंधान में ऐसे मॉडलों और धारणाओं का उपयोग आम है।
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