बता दें कि बॉट मार्केट्स का इस्तेमाल चोरी हुए डेटा को बेचने के लिए किया जाता है। हैकर्स बॉट मालवेयर के जरिए लोगों के अलग-अलग डिवाइस से ये डेटा चुरा लेते हैं। नॉर्ड वीपीएन की स्टडी के मुताबिक, चोरी हुए डेटा में यूजर्स के लॉगइन, कुकीज, डिजिटल फिंगरप्रिंट्स, स्क्रीनशॉट्स और अन्य जानकारियां शामिल हैं। इस डेटा में एक व्यक्ति की डिजिटल पहचान को 490 रुपये में बेचा जा रहा है। बॉट मार्केट 2018 में लॉन्च किया गया था और नॉर्ड वीपीएन तब से डेटा को ट्रैक कर रहा है।
नोर्ड वीपीएन ने तीन प्रमुख बॉट बाजारों, जेनेसिस मार्केट, रशियन मार्केट और 2ईज़ी का अध्ययन किया और पाया कि चोरी किए गए डेटा में Google, माइक्रोसॉफ्ट और फेसबुक खातों से लॉगिन शामिल हैं। नॉर्ड वीपीएन के चीफ टेक्नोलॉजी ऑफिसर मारिजस ब्रैडिस ने बताया कि बॉट मार्केट अन्य डार्क वेब मार्केट से काफी अलग है और इसमें हैकर्स एक जगह से किसी व्यक्ति का ज्यादा से ज्यादा डेटा हासिल कर लेते हैं। इसके साथ ही डाटा बेचने के बाद हैकर्स खरीदार को यह भी गारंटी देते हैं कि जब तक यूजर की डिवाइस बॉट से प्रभावित है, तब तक उन्हें यूजर की जानकारी मिलती रहेगी। नॉर्ड वीपीएन के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में विभिन्न उपकरणों से 667 मिलियन कुकीज़, 81,000 डिजिटल फिंगरप्रिंट, 5,38,000 ऑटो-फिल फॉर्म, स्क्रीनशॉट और वेबकैम स्नैप पाए।
भारत में साइबर सुरक्षा का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है
आपको बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब भारतीय यूजर्स का डेटा बेचने का मामला सामने आया है और यही वजह है कि साइबर सुरक्षा अभी भी भारत के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। अभी की बात करें तो 23 नवंबर को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के कई सर्वरों को निशाना बनाया गया था और उसके एक हफ्ते बाद 30 नवंबर को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) को भी 24 में 6000 हैकिंग प्रयासों का निशाना बनाया गया था घंटे।
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