पति के घर में प्रवेश करते ही पत्नी का गुस्सा फूट पड़ा..
''पूरे दिन कहाँ रहे?
आफिस में पता किया वहाँ भी नहीं पहुँचे।
मामला क्या है?''
'' वो-वो……….मैं……….
पति की हकलाहट पर झल्लाते हुए
पत्नी फिर बरसी
'' बोलते नही?
कहां चले गये थे।
ये गंन्दा बक्सा और कपड़ों की पोटली किसकी उठा लाये?''
'' वो मैं माँ को लाने गाँव चला गया था।''
पति थोड़ी हिम्मत करके बोला।
''क्या कहा,
तुम्हारी मां को यहां ले आये?
शर्म नहीं आई तुम्हें। तुम्हारे भाईयों के पास इन्हे क्या तकलीफ है?''
आग बबूला थी पत्नी, इसलिये उसने पास खड़ी फटी सफेद साड़ी से आँखें पोंछती बीमार वृद्धा की तरफ देखा तक नहीं।
''इन्हें मेरे भाईयों के पास नहीं छोड़ा जा सकता।
तुम समझ क्यों नहीं रहीं।''
पति ने दबीज़ुबान से कहा।
''क्यों, यहाँ कोई कुबेर का खजाना रखा है?
तुम्हारी सात हजार रूपल्ली की पगार में बच्चों की पढ़ाई और घर खर्च कैसे चला रही हूँ मैं ही जानती हूँ ''
पत्नी का स्वर उतना ही तीव्र था।
''अब ये हमारे पास ही रहेगी।''
पति ने कठोरता अपनाई।
'' मैं कहती हूँ इन्हें इसी वक्त वापिस छोड़ कर आओ।
वरना मैं इस घर में एक पल भी नहीं रहूंगी और इन महारानीजी को भी यहाँ आते ज़रा भी लाज नहीं आई।
''कह कर औरत की तरफ देखा तो पाँव तले से ज़मीन सरक गयी।
झेंपते हुए पत्नी बोली।
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''मां तुम!''
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''हाँ बेटा! तुम्हारे भाई और भाभी ने
मुझे घर से निकाल दिया।
दामाद जी को फोन किया तो ये मुझे यहां ले आये ''
बुढ़िया ने कहा तो पत्नी ने गद्गद् नजरों से पति की तरफ देखा और
मुस्कराते हुए बोली।
'' आप भी बड़े वो हो डार्लिंग,
पहले क्यों नहीं बताया कि मेरी मां को लाने गये थे....."
(तमाम संस्कारवान बहुओं को समर्पित)
मां ...और संस्कारवान बहू