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विवाद की जड़
सराफा एसोसिएशन का कहना है कि चौपाटी में 80 पारंपरिक खानपान की दुकानें हैं, जिनसे सालों से सराफा की पहचान बनी हुई है। लेकिन बाद में आईं करीब 120 दुकानों को हटाया जाना चाहिए। इन दुकानों से व्यापारियों को किराया तो अच्छा मिल रहा है, मगर सुरक्षा, स्वच्छता और ट्रैफिक जैसी दिक्कतें भी बढ़ी हैं।
नगर निगम का रुख
पांच दिन पहले ही निगम ने फैसला लिया था कि 1 सितंबर से सिर्फ 80 पुरानी दुकानों को अनुमति मिलेगी और बाकी 120 अवैध दुकानें हटाई जाएंगी।
सहमति पर अटकी बात
सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष हुकुम सोनी का कहना है कि फिलहाल दुकानों को पूरी तरह हटाने पर सहमति नहीं बन पाई है। व्यापारी इस पर तैयार नहीं दिख रहे। हालांकि रात 10 बजे के बाद ही चौपाटी लगाने पर बातचीत आगे बढ़ रही है। सोनी ने साफ किया कि सुरक्षा और सफाई पर किसी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
चौपाटी दुकानदारों की प्रतिक्रिया
चाट चौपाटी एसोसिएशन के अध्यक्ष राम गुप्ता का कहना है कि व्यापारी जो भी कमियां हैं, उन्हें दूर करेंगे। उनका कहना है कि दुकानें समय पर लगेंगी और सफाई पर पूरा ध्यान दिया जाएगा। अभी कई दुकानदार तय समय से पहले दुकानें खोल देते हैं, जिससे समस्या होती है। गुप्ता ने भरोसा दिलाया कि आगे से सभी दुकानदार तय समय का पालन करेंगे।
सबसे बड़ा मुद्दा: समय
असल विवाद दुकानों की संख्या से ज्यादा समय का है। सराफा कारोबारियों का कहना है कि चौपाटी जल्दी लगने से ज्वेलरी बाजार को नुकसान होता है। शाम 7 बजे से ही दुकानें सजने लगती हैं, जिससे ट्रैफिक जाम और सुरक्षा का खतरा बढ़ता है। गैस सिलेंडरों के इस्तेमाल से आगजनी की आशंका भी बनी रहती है। कारोबारियों की मांग है कि सोने-चांदी की दुकानें रात 10 बजे तक चलें और उसके बाद ही चौपाटी खुले।