लगातार पांच महीनों तक महंगाई दर आरबीआई के दायरे में रही, जिसके बाद मई और जून में यह प्रतिशत की ऊपरी सीमा को पार कर गई। जुलाई में यह एक बार फिर 6 फीसदी के दायरे में था। इस महीने हुई मौद्रिक नीति समिति की बैठक में महंगाई एक अहम मुद्दा था। खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट के कारण खुदरा मुद्रास्फीति में गिरावट दर्ज की गई है। खाद्य मुद्रास्फीति की दर जुलाई में 3.96 थी जो जून महीने में 5.15 प्रतिशत थी। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार जुलाई 2020 में खुदरा महंगाई दर 6.73 थी, जबकि जून 2020 में यह 6.26 प्रतिशत थी।
आरबीआई ने बढ़ाया महंगाई दर का अनुमान
अगस्त के पहले सप्ताह में, जब रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक हुई, आरबीआई ने बढ़ती मुद्रास्फीति पर चिंता व्यक्त करते हुए चालू वित्त वर्ष (2021-22) के लिए मुद्रास्फीति पूर्वानुमान को बढ़ाकर 5.7 प्रतिशत कर दिया। पहले यह अनुमान 5.1 फीसदी था।
महंगाई को लेकर आरबीआई ने लगाया है ये अनुमान
आरबीआई ने सितंबर तिमाही के लिए खुदरा महंगाई दर 5.9 फीसदी, दिसंबर तिमाही के लिए महंगाई दर 5.3 फीसदी और चौथी तिमाही के लिए 5.8 फीसदी पर रखा है। वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही यानी अप्रैल-जून 2022 के लिए यह अनुमान 5.1 फीसदी रखा गया है।
आरबीआई का 4 फीसदी का लक्ष्य
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 4 फीसदी खुदरा महंगाई का लक्ष्य रखा है। इसमें 2 फीसदी का मार्जिन दिया गया है। यानी सबसे ज्यादा 6 फीसदी और न्यूनतम 2 फीसदी की महंगाई रिजर्व बैंक के दायरे में आती है। यदि मुद्रास्फीति की दर इस सीमा को पार कर जाती है, तो सरकार और केंद्रीय बैंक दोनों के लिए समस्या बढ़ जाती है। मई और जून के महीनों में खुदरा महंगाई लगातार 6 फीसदी से ऊपर रही। हर दो महीने में होने वाली मौद्रिक नीति की बैठक में नीतिगत फैसलों के लिए आरबीआई के लिए खुदरा मुद्रास्फीति के आंकड़े बहुत महत्वपूर्ण हैं।
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