14वीं तवांग तीर्थ-यात्रा 19 से 25 नवंबर तक, भारत-तिब्बत सहयोग मंच के नेतृत्व में राष्ट्रीय एकता और संकल्प का संगम
नई दिल्ली/अरुणाचल। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं भारत-तिब्बत सहयोग मंच के मार्गदर्शक डॉ. इन्द्रेश कुमार के मार्गदर्शन में संचालित मंच ने अपनी निरंतर सक्रियता से एक नई परंपरा गढ़ी है। मंच पिछले 26 वर्षों से तिब्बत की आज़ादी, कैलाश-मानसरोवर की मुक्ति, हिमालय की रक्षा और पर्यावरण सुरक्षा जैसे मुद्दों पर काम कर रहा है। इन्हीं प्रयासों का जीवंत उदाहरण है तवांग तीर्थ-यात्रा, जिसकी शुरुआत वर्ष 2012 में हुई थी और जो अब अपने 14वें वर्ष में प्रवेश कर रही है। इस वर्ष यात्रा 19 से 25 नवंबर तक आयोजित होगी।
भारत तिब्बत सहयोग मंच के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री एवं तवांग तीर्थ-यात्रा समिति के संयोजक पंकज गोयल का कहना है कि यह यात्रा केवल सामान्य यात्रा नहीं है, बल्कि भारत की आत्मा से ओतप्रोत विशेष यात्रा है। इसमें राष्ट्रीय एकता, सांस्कृतिक समन्वय, आध्यात्मिक उत्थान और देशभक्ति की भावना एक साथ जुड़ती है। यात्री पूर्वोत्तर भारत के तवांग जिले के बुमला बॉर्डर तक पहुँचकर भारत भूमि का पूजन करते हैं और चीन को स्पष्ट संदेश देते हैं कि भारत अपनी भूमि की रक्षा के लिए पूरी तरह सक्षम है।
पूर्वोत्तर भारत के लोग इस यात्रा का स्वागत आत्मीयता और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिए करते हैं। यात्रियों को यहाँ की लोक संस्कृति, सरलता और प्राकृतिक सुंदरता गहराई से प्रभावित करती है। तेजपुर का महादेव मंदिर, जसवंतगढ़ का स्मारक, तवांग मठ, नानक लामा स्थल और अन्य ऐतिहासिक धरोहरें इस यात्रा को और समृद्ध बनाती हैं।
नवंबर माह में यात्रा का आयोजन ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। 1962 में इसी महीने चीन ने भारत पर आक्रमण किया था, लेकिन भारतीय सैनिकों ने अदम्य साहस दिखाकर दुश्मन को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। उसी वर्ष 14 नवंबर को संसद ने संकल्प लिया था कि चीन से छीनी गई भूमि का एक-एक इंच वापस लिया जाएगा। इस यात्रा के माध्यम से उसी संकल्प की याद दिलाई जाती है।
पंकज गोयल का कहना है कि हर भारतवासी को जीवन में एक बार तवांग तीर्थ-यात्रा अवश्य करनी चाहिए। इससे न केवल राष्ट्र की विविधता और एकता को समझने का अवसर मिलेगा बल्कि भारत की शक्ति और संकल्प का भी सजीव अनुभव होगा।