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पंचम दिवस की कथा में भगवान श्रीकृष्ण की गोवर्धन लीला का मार्मिक वर्णन हुआ। जब ब्रजवासियों को इंद्र की पूजा से रोकते हुए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन महाराज की पूजा का संदेश दिया और क्रोधित इंद्रदेव ने मूसलधार वर्षा शुरू कर दी, तब बाल रूप श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठा अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर समस्त ब्रजवासियों को उसकी छाया में आश्रय दिलाया। इस अद्भुत लीला का भक्तों ने सजीव अनुभव किया और पूरे पंडाल में "जय श्रीकृष्ण" व "गोवर्धन महाराज की जय" के जयघोष गूंज उठे।
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कथा के प्रारंभ में आचार्य श्री देवकरण पंड्या जी के सानिध्य में मुख्य यजमानों से सभी देवताओं का वैदिक पूजन सम्पन्न कराया गया। कथा के पश्चात भगवान श्रीकृष्ण को छप्पन भोग अर्पित किए गए।
कथा स्थल पर प्रतिदिन की तरह इस दिन भी श्रद्धालु भक्ति में झूमते नजर आए। "राधे कृष्ण गोविंद गोपाल" जैसे भजनों पर भक्तजन भावविभोर हो उठे।
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